रविवार, 16 जुलाई 2023

क्या सर्वेश्वरी दुर्गा का उद्गमस्थल बिक चुका है ⁉️

ये हमारी कुल देवी है, इनके आराधना में रत 1602 ई0 से आजतक का हमारे पुरखों का स्वर्णिम कुर्सी नामा रहा है , इस पुनित कार्य मे चेरी वंश, सुगांव, बेतिया राज व अनेकों सक्षम लोगों का ससमय भरपूर सहयोग मिलते रहा है, 
कोर्ट औफ वाड्स कैसे इसे अधिग्रहित कर हमें शोषण, अतिक्रमण और बद्दुआ मजदूरी के महाजाल में जकड़ लिया, यह आज भी हम सनातनीयों के लिए एक दुविधा भरा महाप्रश्न है, 

ऐसे में कानून हाथ में लेकर नहीं बल्कि कानुन को साध लेकर हम धर्म रक्षकों का अंदोलित रहना स्वाभाविक ही है, 

 

दुर्गा बाग मंदिर का यह गर्भ गृह प्रवेश द्वार है, यहां दोनों ओर फूल मिठाई की दुकानें है, यहां खड़ा होने के लिए भी दुकानदारों के अनुमति की आवश्यकता पड़ती है,
यह मंदिर का यज्ञशाला है, इसके बगल में दिख रहा छोटा कमरा मंदिर के दर्शनार्थी महिलाओं के कपड़ा बदलने के लिए चेंजिंग रुम है,  जिसे सन 2021ई0 तक अपने नाम से मंदिर नीलाम कराने वाले सेतु सिंह अपना ताला लगा कर अपने कब्जा में रक्खे हुए हैं, जरुरतमंद को आज भी सशुल्क उपलब्ध कराते हैं 
यहां भक्त गण पुजा के पुर्ण फल प्राप्ति हेतु परिक्रमा करते है, जिन की संख्या तिथि या उत्सव विशेष पर बढ़ जाती है, ऐसे में किसी अप्रिय घटना से  बचाव के लिए हमारे संस्था द्वारा रेलिंग लगाया गया है, जिसे सराती बच्चे बार बार तोड़ कर खेलने के लिए बेखौफ होकर अपने साथ लेजाते हैं, हमारे द्वारा मना करने पर हमसे मारपीट करने केलिए  मंदिर भुमि पर बसे लोगों की फौज हर पल उपस्थित रहती है

गुरुवार, 27 मई 2021

आपातकाल की तैयारी


अ. ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के कारण विश्‍व मे सागर के जलस्तर का बढना

आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होनेवाले परिवर्तन’ । पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे १०० सालों के औसत तापमान पर १० फारेनहाईट आँका गया है।) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं।ग्रीन हाउस गैस वो गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढाने में कारक बनती है ।  वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो २१वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान ३ डिग्री से ८ डिग्री सेल्सियस तक बढ सकता है । अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे । दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं, इससे समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर बढ जाएगा । इससे दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो सकते हैं, भारी तबाही मच सकती है । यह तबाही किसी विश्‍वयुद्ध या किसी ‘ऐस्टेरॉइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी । हमारे ग्रह पृथ्वी के लिये भी यह स्थिति बहुत हानिकारक होगी ।इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदोने २०१९ में ट्वीट कर कहा था ‘वर्तमान राजधानी जाकार्ता शहर पानी के नीचे जाने की संभावना होने से हमारे देश की राजधानी बोर्नियो द्वीपपर स्थानांतरित हो जाएगी ।’ किसी देश को अपनी राजधानी में बदलाव करना पडे, इससे हम परिस्थिति की गंभीरता समझ सकते हैं ।

१ आ. ‘कोरोना’ गुट के ‘कोविड-१९’ वायरस की विश्‍वमारी

वर्तमानकाल में हम इसी महामारी के आपातकाल से गुजर रहे हैं । चीन से प्रारंभ हुए इस महामारी को आज २ महिने में ही विश्‍वमारी घोषित किया गया है । आज तक इसके प्रकोप से हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग इसके चपेट में आ चुके हैं । अब यह आंकडा कहां तक जाता है, यह हम भविष्य मे देखेंगे, पर आज तक तो इस महामारी के पर कोई दवाई उपलब्ध नहीं है

 २. आपातकाल क्यों आता है ?

पिछले एक दशक से हम पूरे विश्‍व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव कर रहे हैं । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं । इन की तीव्रता के कारण हुआ घोर विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है । हमें समझना होगा कि प्रकृति के इस कोप का कारण क्या है ?

२ अ. सेमेटिक विचारधारा के पंथ

अन्य पंथों में पुण्य की कोई संकल्पना ही नहीं है । उनके पंथ निर्माता के मार्गपर चलना पुण्यकारक माना गया है, तथा उसके विरुद्ध कृति करना पाप माना गया है । इन पंथों की धारणा है कि मानव सर्वश्रेष्ठ है और सारी सृष्टि केवल भोग के लिए है । इस कारण प्रकृति को अलग मानकर उसका दोहन करने की प्रवृत्ती बढी है । दुर्भाग्य से भारत मे भी पश्‍चिमी देशों के लोगों द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली चल रही है । इसलिए भारत मे भी आज की पीढी की भी वही प्रवृत्ति हो गई है । इसी कारण पर्यावरण का प्रदूषण करना, जंगल का विनाश करना आदि प्रवृत्तियां बढ रही हैं । जंगल का नाश होगा, तो वन में रहनेवाले प्राणी नागरी बस्तियों मे प्रवेश करेंगे, वर्षा अनियंत्रित होगी तथा ग्लोबल वॉर्मिंग में बढोतरी होगी । इस प्रकार मानव आपदाओंको आमंत्रित कर रहा है

२ आ. मानव का स्वार्थ

मानव की अपने हित को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति भी बढ गई है । अपने स्वार्थ के लिए सागर तथा नदी के क्षेत्र पर अतिक्रमण करना, पशुओं की हत्या करना, रासायनिक तथा जैविक शस्त्र बनाना, वायु तथा जल का प्रदूषण करनेवाले केमिकल्स बनाना, ऊर्जा का अतिरिक्त उपयोग करना आदि इसके उदाहरण हैं । इनके कारण भी अनेक आपदाओं का सामना करना पड रहा है । वर्तमानकाल की कोरोना वायरस की महामारी भी इसी का एक उदाहरण है ।इसी स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण आज सागरतट पर खारे पानी में उगनेवाली तथा तट की प्राकृतिक सुरक्षा करनेवाली मँग्रोव के जंगल काटकर उस जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है । इससे त्सुनामी के प्रकोप से मानव की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा दिया सुरक्षाकवच ही हम नष्ट कर रहे हैं । इसका भयंकर परिणाम हमने त्सुनामी के समय देखा भी है ।

 ३. आध्यात्मिक परिपेक्ष्य से क्यों आता है वैश्‍विक संकट ?

कोरोना जैसी महामारी हो अथवा अन्य नैसर्गिक आपदा, हर कोई अपने ढंग से उसका कारण ढूंढता है । जैसे वैज्ञानिक हो, तो वह अपना तर्क बताते हैं कि यह आपदा क्यों आई और इसका परिणाम क्या होगा ? जबकि पत्रकार अपना तर्क लगाते हैं । पर हमें आपदा का आध्यात्मिक परिपेक्ष्य देखना है । इसलिए कि बिना आध्यात्मिक परिपेक्ष्य समझे हम आपदाओं को समझ नहीं पाएंगे ।

 3 अ. आध्यात्मिक परिपेक्ष्यकी विशेषता !

क्योंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता । सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है । इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्‍विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे ? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है ।कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है ।

अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः ।स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः ॥इस श्‍लोक का अर्थ इसप्रकार है । राज्यकर्ता तथा प्रजा के धर्मपालन न करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), टिड्डियों का आक्रमण, चूहों अथवा तोतों (पोपट) का उपद्रव, एक-दूसरे में लढाइयां और शत्रु का आक्रमण, इस प्रकार के सात संकट राष्ट्र पर आते हैं ।

तात्पर्य : प्रजा एवं राजा, दोनों को धर्मपालन एवं साधना करनी चाहिए । तब ही आपातकाल की तीव्रता अल्प होकर आपातकाल सुसह्य होगा ।आध्यात्मिक परिपेक्ष्य के कुछ पहलु समझकर लेते हैं ।


३ आ. युगों का कालचक्र

हमारे शास्त्रों में सत्ययुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग, ऐसे चार युगों का स्पष्ट उल्लेख है । वर्तमान में कलियुग के अंतर्गत चल रहे पांचवें कलियुग के अंत का समय है । इसके बाद कलियुग के अंतर्गत एक छोटासा सत्युग आएगा । अभी का समय छोटे कलियुग के अंत का है । कल्कि अवतार के समय के कलियुग का नहीं ।

३ इ. उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, यह कालचक्र का नियम

युगपरिवर्तन, यह ईश्‍वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है । जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है । इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते हैं । उदाहरण के रूप में, हिमालय पर्वतशृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगी और अंत में नष्ट हो जाएगी । इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्‍व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्‍चात वह अवश्य नष्ट होगी । केवल निर्माता अर्थात ईश्‍वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय है ।इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है । अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपदाओं से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है ।इसमें समझना होगा कि आपदाओं से जो नष्ट हो रहा है उसके अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं । नाश की इस प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है । इसकी मात्रा ७० % होती है ।इसमें, उत्पत्ति-स्थिति-लय (विनाश) इस कालचक्र के नियमानुसार रज-तम गुणी (पापी) लोगों की सबसे अधिक प्राणहानि होगी । इससे, वातावरण की एक प्रकारसे शुद्धि ही होती है । इस काल का उल्लेख अनेक भविष्यवेत्ताआें ने भी अपनी भविष्यवाणियों में किया है ।

3 ई. मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध !

वर्तमान कलियुग में मनुष्य का ६५ प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और ३५ प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है । ३५ प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रारब्ध (भाग्य)के रूप में उसे भोगना पडता है । वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाव में समाज के अधिकांश लोगों से स्वार्थ या बढते तमोगुण के कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है । यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पडते हैं; क्योंकि समाज उसकी ओर अनदेखी करता है । इसीप्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पडता है । जैसे आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है । उसी प्रकार यह है ।इसके साथ ही समाज, धर्म और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है । २०१३ से २०२३ के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भोगना पड सकता है ।

३ उ. प्रकृति कैसे कार्य करती है ?

जिसप्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसीप्रकार बुद्धिअगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है । समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ गया है । इससे प्रकृति का ध्यान भी नहीं रखा जा रहा है ।रज-तम बढने का अर्थ है, सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्‍व में बुद्धिअगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना । जिसप्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसीप्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिसाद देती है ।वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलडा भारी हो है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्‍विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है । इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है ।मूलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है । मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है ।

 मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपदाओं का कारण !

आज विश्‍व की आपदाओंका कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार का यह परिणाम है । लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं । अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता । तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वे प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं । सरकार कितना भी प्रयास करे । कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने समाज ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है ।समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते है । यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वे धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं । उनके व्यवहार में व्यापकता है । उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है । उन्हें अधर्म का परिणाम पता है । कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम ! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है ।

 ५. क्या आपातकाल रोकना संभव है ?

अब काल तो भीषण है, यह विज्ञान भी कह रहा है । कुछ लोगों के गलत कर्म और उसकी अनदेखी करनेवाले अन्य लोगों के कारण आज पूर्ण समाज को इस आपातकाल का परिणाम भुगतना पडेगा । मानव ने प्रकृति को इतना असंतुलित किया है कि अब प्रकृति अपना संतुलन बनाएगी । पर उसका परिणाम हम सभी को भुगतना पडेगा ।हमारा दुर्भाग्य यह है कि हमारी संस्कृति ही प्रकृति की पूजा करनेवाली थी । गोमाता, गंगानदी, बरगद, पीपल, गंगासागर, कैलाश पर्वत, मानसरोवर इस प्रकार हम वृक्ष से x`लेकर महासागर तक प्रकृति की पूजा करते थे । हमारी संस्कृति इस भूमि को पवित्र भारतमाता माननेवाली, पत्थर में भी भगवान देखकर उसे पूजनेवाली थी, परंतु विदेशी शिक्षापद्धति तथा कम्युनिस्ट विचारधारा के कारण हमने इसे निम्न दर्जे का मानना प्रारंभ किया । गौमाता को संभालने में हमें लाभ-हानि दिखाई देने लगी । धीरे धीरे हमने पश्‍चिम की और आकर्षित होकर अपने ऋषि-मुनियों और अपने पुरखों द्वारा संजोई आचरण पद्धति को ठुकरा दिया । विदेश में जो हो रहा है, वह अच्छा और हमारे प्रौढ व्यक्ति जो धर्म का ज्ञान देते हैं, वह पिछडा, यह मनोभाव भी हर भारतीय को संकेत दे रहा है, अब तो जाग जाओ ।

  • हमारे मनोभाव में केवल परिवर्तन ही नहीं हुआ, अपितु वह नीचे गिर गिर गया है ।
  • तुलसी की जगह मनीप्लांट ने ले ली ।
  • गोमाता की जगह कुत्तों ने ले ली ।
  • हमने हाथ जोडकर नमस्ते, राम-राम कहना छोडकर शेकहैंड करना प्रारंभ किया ।
  • जन्मदिनपर आरती उतारना छोडकर, केक काटना और फूंक मारकर मोमबत्ती बुझाना प्रारंभ किया ।
  • बाहर से घर में आते समय पैर धोना तो दूर की बात, जूते पहनकर हम घर में घूमने लगे ।
  • क्या खाना है, कब खाना है, कैसे खाना है, इसका भी हमनें ध्यान रखना छोड दिया ।
  • जूठा अथवा प्राणियों द्वारा सूंघा भोजन न खाना, जन्म-मृत्यु के समय सूतक रखना, आदि सभी हमारे आचारधर्म की बाते हमने पिछडेपन के नाम पर ठुकरा दीं । मंदिर जाने में हमें कमीपना लगने लगा ।
  • खेद है कि अज्ञानवश जिन बातों को हमने छोडा, उसको आज विदेश अपना रहा है ।

‘स्वाइन फ्ल्यू’ और अब ‘कोरोना’ के बाद पूरा विश्‍व नमस्ते कर रहा है !्डिस्कवरी चैनल यह शोध बता रहा है कि बच्चा जब जन्मदिन पर केक पर रखी मोमबत्ती बुझाता है, तो उसके मुंह के जिवाणु जाकर केकपर गिरते हैं । ऐसा केक खाना सेहत के लिए गलत है ।्करोना के बाद अब बाहर से आनेपर लोग स्नान कर रहे है, बार बार हाथ-पैर धो रहे हैं । परंतु हम क्यों भूल गए हमारे यहां संध्या होती थी । हमारे यहां बाहर से आने पर जूते निकालकर, हाथ-मूंह धोकर ही घर में प्रवेश होता । घर में होते, तो भी संध्या के समय हाथ-मूंह धोना एक नित्य आचार था ।हमारे धर्माचरण को स्वच्छता तक ही सीमित नहीं रखा था, स्वच्छता के साथ पवित्रता भी कैसे रहेगी, इतना गहरा चिंतन हमारा था ।पर हमने सब छोड दिया और अब उसके परिणाम हम भुगत रहे हैं ।केवल भोजन की बात करें । तो हमारे यहां केवल बाह्य सफाई का तो पूरा ध्यान था ही । पर भोजन बनाते समय मन में पवित्रता आए, इसलिए भगवान को भोग लगाने की व्यवस्था थी । भोजन को यज्ञ का स्थान देकर उससे पहले प्रार्थना होती थी । भोजन बनाना, परोसना, खाना आदि सभी के विषय में कुछ नियम थे । भोजन का एक अंश गोमाता और कुत्ते के लिए निकाला जाता था । इतना विलक्षण आचरण छोडकर, आज हमने अपनी क्या स्थिति बना ली है ? आज तो घर का ताजा भोजन छोडकर होटल, स्वीगी, झोमैटो से आ रहा खाना हमें पसंद है । विवाह और पार्टियों में हमें खडे होकर खाने में प्रतिष्ठा लगती है । फिर रोग तो होंगे ही न ? मानसिक बिमारियां भी आएंगी ही ।अभी भी समय है, हमें हमारे धर्म, संस्कृति की ओर लौटना होगा और पूरे विश्‍व को राह दिखानी होगी कि प्रकृति को संतुलित होना है, तो पूरब की ओर लौट चलें  ।

 अ. आपातकाल की तैयारी कैसी करनी चाहिए ?

आपातकाल की दृष्टि से भौतिक तैयारी

आपातकाल में चक्रवाती तूफान, भूकंप आदि के कारण बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है । पेट्रोल-डीजल आदि इंधन की किल्लत होने से यातायात की व्यवस्था भी रुक जाती है । उसके कारण रसोई गैस, खाने-पीने की वस्तुएं भी कई मास तक नहीं मिलतीं अथवा मिली, तो भी उनकी नियंत्रित आपूर्ति (रेशनिंग) की जाती है । आपातकाल में डॉक्टर, वैद्य, औषधियां, चिकित्सालय आदि की उपलब्धता होना लगभग असंभव होता है । यह सब ध्यान में लेते हुए आपातकाल का सामना करने हेतु सभी को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक इत्यादि स्तरों पर पूर्वतैयारी करना आवश्यक है । आपातकाल की दृष्टि से आध्यात्मिक स्तर पर क्या व्यवस्था करनी चाहिए ?

आगामी काल में आनेवाली भीषण आपदाओं से रक्षा होने के लिए अच्छी साधना करना और भगवान का भक्त बनना आवश्यक है । इसके लिए अभी से प्रयत्न आरंभ करें ।

आ १. हम पर देवता की कृपादृष्टि होने के लिए और अपने सर्वओर सुरक्षा-कवच बनने के लिए आगे बताई बातें प्रतिदिन करें । देवपूजा करें । सायंकाल देवता और तुलसी के पास दीया जलाकर उसे नमस्कार करें । संध्याकाल दीया जलने बाद घर के सब लोग आराम से बैठकर स्वास्थ्य और सुरक्षा-कवच प्रदान करनेवाला श्‍लोक / स्तोत्र पाठ (उदा. रामरक्षास्तोत्र, मारुतिस्तोत्र, हनुमान चालीसा, देवीकवच आदि) करें । रातमें सोते समय बिछौने के चारों ओर देवताओं केे नामजप की सात्त्विक पट्टियों का चौकोर मंडल बनाएं और सुरक्षा के लिए उपास्यदेवता से प्रार्थना करें !" ॐ कुलदेेवी नम;""

आ २. आगामी तीसरे विश्‍वयुद्ध के समय छोडे जानेवाले परमाण्विक अस्त्रों के विकिरणों का वातावरण पर जो प्राणघातक प्रभाव पडेगा, उससे बचने के लिए प्रतिदिन अग्निहोत्र करें ।

आ ३. कोरोना विषाणुओं के विरुद्ध स्‍वयं में प्रतिरोध शक्‍ति बढाने के लिए आध्‍यात्मिक बल प्राप्‍त हो, इसके लिए ईश्‍वर द्वारा सुझाया नामजप करें !"" ॐ कुलदेवी नम;

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

बेतियाराज के मन्दिर कर्मियों का बंधुआ मजदूरी की प्रथा बंद हो

सेवा में,
      श्रीमान व्यवस्थापक महोदय , बेतिया राज
        अंडर कोर्ट-ऑफ वाड्स 
१९६६ ई० से हीं बिना किसी रख-रखाव, सफाई-सुरक्षा, पर्यटन-विकास व पोषण हींन मन्दिरों का डाक बंद हो ,बेतिया राज के मन्दिर व पुजारियों के बेलगाम शोषण व बंधुआ मजदूरी की प्रथा बंद हो तथा मन्दिर कर्मियों को भी कार्य अवधि के अनुशार भुगतान की व्यवस्था एवं अतिक्रमण मुक्ति की व्यवस्था किया जाय मुझे नया मन्दिर अधीक्षक बनाएं,ताकि रख रखाव की पूर्ववत व्यवस्ता रह सके,अन्यथा मन्दिर कर्मियों का कार्यक्षेत्र निति निर्धारित करके ठेकेदार परम्परा के अनुसार सभी मन्दिर मुझे 30 वर्षो के लिए समान्य व निर्धारित दर से किराये पर दिया जाय, इस पुनीत कार्य के लिए हम सब सपरिवार आपके आभारी रहेंगे, b9431491033@gmail.com / 238572 / 9470206447
सूचनार्थ
श्रीमान-जिलाधिकारी-महोदय,पच्छिम-चम्पार-बिहार                                    
श्रीमान-पुलिस-अधीक्षक-महोदय,महोदय, पच्छिम चम्पारण , बिहार                        

पुलिस-उप-महा-निरीक्षक-महोदय,चम्पारण,बिहार 

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

सरस्वती पूजा पर बिचार्नीय प्रश्न

मित्रो , सरस्वती पूजा  हिन्दुओं का महोत्सव है, हमे अपने अपने शिक्षण संस्थाओं में मनाना भी चाहिए, मै भी बेतिया समेत कई जगह पूजा करने जाता हूँ जहाँ पूजा की परोपकारी झलक दिखती है, ,..... वही कई जगह चंद आताताइयो द्वारा आक्रामक होकर रंगदारो की भांति मनाने की शास्त्र बिरोधी परम्परा अपनाने वालो रोके, बाहनों व आने जाने वाले पथिको को प्रताड़ित कर जबरन वशूली , अश्लील गानों पर नृत्य, एक परम्परागत कुरीति का रूप ले रहा है, जिसके चलते सरस्वती पूजा के कुछदिन पूर्व सेहीं तमाम बाहन चालको में अनिश्चित स्थानों पर अनियंत्रित तरीकों से वशुली का आतंक व्याप जाता है, माँ, सरस्वती पूजा उर्दू अमना समेत सभी शिक्षण संस्थानों में हो यह भी सुनिश्चित किया जाये,  वही अपनी रंगदारी दिखानेवाले व वसूलने वाले संस्थान का समाजिक बहिष्कार हो

बुधवार, 4 जनवरी 2017

भगवतीचरण बंदना की बाकी पंत्तियाअब आप सब माँ सर्वेश्वरी के भक्ति में लीन हो कर पूरा करें

जगसे होके मै निराश तेरे दरबार में आया हूँ, पूरा करदे मेरी आस,तेरे दरवार में आया हूँ, महिषासुर शुम्भ निशुम्भ ने जब,धरती पर अत्याचार किया, तूने रूप अनेको धरके माँ , उन दुष्टों का संहार किया, हल्का किया धरती का भार, तेरे दरबार में आया हूँ,स्नान ध्यान जप तप पूजा, तेरे चरणों में अर्पित है, जो कुछ भी है पास मेरे , मातेश्वरी तुझे समर्पित है,सर्वेश्वरी तुझे समर्पित है, पूरा करदे मेरी आस , तेरे दरवार में आया हूँ , जगसे होक मै........

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

समूह गान

||सर्वेश्वरी तू पहिमाम् शरणागतम,मातेश्वरी तू पाहिमाम शरणागतम,|| हे जगजननी तेरे शरण में मै रहू , मुझको तू अपनी भक्ति दे, परपीड़ा दूर कर सकूं, मुझको माँ अपनी शक्ति दे , तू शक्ति है इसजगकी, करो विश्व का कल्याण, शरणागतम ||सर्वेश्वरी तू पहिमाम् शरणागतम,मातेश्वरी तू पाहिमाम शरणागतम,|-शरणागतम, हे जगजननी तेरे शरण में आया हूँ रक्षा करो, पर-पिड्को से माँ मै घबडाया हूँ माँ रक्षा करो, तू शक्ती है इसजग की करो विश्व का कल्याण ,शरणागतम२  ||सर्वेश्वरी तू पहिमाम् शरणागतम२,मातेश्वरी तू पाहिमाम शरणागतम,|-शरणागतम,चारो तरफ है घोर अँधेरा यहाँ छाया हुआ, मानव अकेले है अपनी मानवता गवाया हुआ, अतिक्रमण हटा माँ इस जगसे , करो विश्व का कल्याण शरणागतम ||सर्वेश्वरी तू पहिमाम् शरणागतम,मातेश्वरी तू पाहिमाम शरणागतम,|-शरणागतम,तेरे शरण में मै रहूँ ,मुझको माँ अपनी भक्ति दे, पर-पीड़ा दूर कर सकू ,मुझको माँ अपनी शक्ति दे, तू शक्ति है इस जग की,करो विश्व का कल्याण, शरणागतम ||सर्वेश्वरी तू पहिमाम् शरणागतम,मातेश्वरी तू पाहिमाम शरणागतम,|-शरणागतम,

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

क्या तमाम सक्षम अधिकारी कार्यवाही करने में अक्षम है,अब जनता को ही मन्दिर से अतिक्रमण हटाना होगा

सेवा में ,
 श्रीमान जिलापदाधिकारी महोदय,
पश्चिम चम्पारण, बेतिया
विषय:- दुर्गाबाग परिषर में अतिक्रमण के सम्बन्ध में,
 महाशय,
उपयुक्त विषय के सम्बन्ध में हम सभी दुर्गा भक्तों का अनुरोध है,कि दुर्गाबाग परिसर के थाना नं० १३२ के खाता संख्या 2 के खेसरा ३१ से ३५ तक के तमाम बाग, भवन, भूखंड व तालाब दुर्गाबाग मन्दिर के है जिसका व्योरा प्रति संलग्न है, जिसके पश्चिम-उत्तरी कोने पर बेतिया राज के पूर्व अर्दली स्व०समसुल मिया को अस्थाई आवास के रूप में मन्दिर के हीं एक अतिथिशाला को आवंटित किया गया था, उनके मृत्योपरांत बन्शजो द्वारा उनकी निजी सम्पत्ति समझ कर आपसी बटवारा कर एक पुत्र अब्दुल द्वारा अवैध रूप से स्थाई-पक्का निर्माण व बिक्री भी बिना नक्शा मंजूरी के ही कराया जा रहा है, यह बहुत ही खेद की बात है, उसे रोकने व उन्हें वहाँ पुन: नही बसने देने के सम्बन्ध में शीघ्र कोई ठोस कदम उठाया जाये, अन्यथा प्रशासन के धीमे क्रिया कलाप से लोगो का विश्वास घटेगा,,
... यह मन्दिर परिसर के कागजातों के बिरुद्ध है, यहाँ तनाव बना हुआ है, यहाँ कभी भी अप्रिय घटना घट सकती है,जिसकी सुचना बेतिया राज मैनेजर को समय-समय देने के वावजूद अभी-भी निर्माण कार्य तीब्र गति से प्रगतिशील है,
अत: श्रीमान से करबद्ध अनुरोध है,कि उक्त अतिक्रमण हटवाने हेतु कृपा प्रदान की जाये, ताकी व्यवस्था शांतिपूर्ण रहे, नहीतो भविष्य में कोईभी अप्रिय घटना घटित हो सकती है, जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन के धीमे क्रियान्वयन की होगी
                                           श्रीमान का विश्वासी
                राकेश चन्द्र झा बब्लू, खैरटिया बेतिया राज पुजारी
                      


प्रतिलिपि :-श्रीमान पुलिस उप महानिरीक्षक महोदय,चम्पारण क्षेत्र बेतिया

श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय, पश्चिम चम्पारण, बेतियाबेतिया दुर्गाबाग मन्दिर परिषर में पनप रहे अतिक्रमण के सैलाब को रोक सकने में बिफल प्रसासन अनुमति दे ........+919431491033