शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

जनसहयोगी निगाहे बेतिया दुर्गाबाग को दुर्ब्यवस्थाओँ से उबारे

राजतंत्र के समाप्ती के बादसे कोर्ट ऑफ वाड्स के अंतर्गत अबैतनिक, लिज तथा अतिक्रमणकारियोँ की शरणस्थली के रुपमे चर्चित राजकर्मीयो द्वारा शोषित, बिश्वके अद्वितिय सर्वेश्वरी शक्तीपीठ नागरशैली की अनुपम कृती एवं बेतिया नगर स्थित इस मंदिर का बाहरी दीवार मरम्मत के आभाव मे जिर्ण हो रहे हैँ , 5 कुआँ समाप्त हो गए है 4 समाप्ती के कागार पर है, मन्दिर के दक्षिण का आयताकार शिवगंगा अबैध मिट्टी-कटाई तथा मल-मूत्र त्याग स्थल बनकर प्रतिदिन अपनी पबित्रता खोते जा रहा है, घंटाघर से सटे दक्षिण से पुर्व एवं पश्चिम तीनो तरफ मकान, दुकान, छात्रावास, कुछ नये मंदिर, स्कुल झोपड़ी तथा गैरेज के रुप मे अतिक्रमणकारियोँ का कब्जा तमाम सक्षम अधिकारियो से लिखित गुहार करने के बावजुद भी प्रतिदिन  शैलब के तरह बढ़ता हीं जा रहा है, दुकानदारोँ द्वारा पुजा सामग्रियोँ के दुकानोँ के आड़ मे वहाँ कइ अनैतिक एवं अबैध कार्यो का संचालन, असमाजिक तत्वो का जमावड़ा तथा भक्तो एवं मन्दिर-कर्मियोँ के साथ दुर्ब्यवहार व उनके समानो की चोरी, पकडे जाने पर जेल जाना, तथा आने-पर पुनः वही कार्य दुहराना उनके लिए समान्य बात है, कुछ अबैध लोग अपने को यहाँका सफाईकर्मी या पुजारी बताकर भक्तोसे जबरन बसूली भी करते है। प्रशासनिक लापरवाही के चलते 1995 ईस्वी से आज-तक अबैध रुपसे बस-रहे लोगो द्वारा मंदिर के सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना, भक्तोका चप्पल -जुते व समानो की चोरीयां, कतिपय तत्वोँ का रोजनमचा है। यहाँ आयोजित बिबाह, अष्टयाम, कथा, मुण्डन-यज्ञोपबित, पाठ-पुजा, लखराव इत्यादी शुभ कार्य़ोके आलावे खान-पान तथा भेट- मुलाकात इत्यादि करर्य भी स्थानाभाव के चलते दर्शन-कक्ष पर ही सम्पन्न कराए जाते है, यहाँ प्रतिदिन हजारोँ भक्त नियमित अपना माथा टेकते हैँ। भक्तोँ के स्वेक्षाचारी प्रबृति के चलते तमाम दर्शनार्थियोँ को तमाम परेशानियोँ तथा फिसलन का सामना भी करना पड़ता है,मंदिर के तमाम भवन तथा भूखण्डोँ को लीज कर तथा सुखे पेड़, बागिचा, तालाब इत्यादी का बार्षिक डाक-कर, यज्ञ अष्टयाम से रसीद के जरिए राजकर्मीयो द्वारा बसुली करना तथा मँदिर संचालन व्यय से मुह मोड़ना तथा 1966 ईस्वी से एक-एक कर निरस्त की जारही तमाम ब्यवस्थाए (जानकारी के लिए पढ़े निरस्त ब्यवस्थाए) डकारना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते है, जबकी अन्य आयोजक मंदिर संचालन को बिना शुल्क दिए ही राजकर्मियो के सह पर बाहरी आचार्योसे यहाँ आयोजन बेरोक- टोक सम्पन कराकर मंदिर को गंदगी का सैलाब डिस्पोजल, जुठन तथा पूजन कचरा भेँट स्वरूप देकर चलेजाते है, ॐ , बेतिया राज तथा प्रशासन एक दुसरे की जबाबदेही बतला कर इस तरफ ध्यान देनातो दुर, आवेदन भी नही थामते, तथा मुकदर्शक बने रहते है, इस शोषण की स्थिति मे भी इस मंदिर के अति प्राचीन पुजारी पंडित कृपा-नाथ झा के 36 वे पीढ़ी की पुजारन श्री मति मालती झा के चार पुत्रो मे बड़ा मै मंदिरो का रंग-रोगन, वार्षिकोत्सव व क्षेत्रसुविधाओ मे विकाश के लिए अब तक कार्यरत रहा तो यहाँ दुर्व्यवस्था फैलाने के लिए मुझे भी खैरटिया भेज दिया गया है,   यह बड़ेही खेद की बात है, जबकि कोर्ट ऑफ वाड्स के प्रतिपाल्य व सदस्य महोदय द्वारा 1999 ईस्वी में ही तत्कालीन बेतिया राज मैनेजर को मन्दिरों के रख-रखाव व संचालन के लिए एक या एकाधिक ट्रष्ट बनाने के लिए लिखित निर्देश दिया था जिसका प्रमाण मेरे पास भी उपलब्ध है, लेकिन तबसे लेकर आज तक कई मैनेजर आये और गये लेकिन ट्रष्ट बनाना तो दूर की बात है , नित्य ही अतिक्रमण कारियों से पैसे ले कर उन्हें मन्दिरों के भूखंडों पर बे रोक टोक आजभी बसाया भी जा रहा है (भक्तजनो तथा प्रशासन के ध्यानाकर्सनार्थ)
09431491033

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

इतिहास बेतिया दुर्गाबाग का

पंचम सत्युग के देवासुर महासंग्राम मे पराजित देवगण बेत्रवती आरण्य मे तपस्या रत थे , उन्ही ऋषियो मे महर्षी अम्भृण की पुत्री मरकतमणी के समान( हरे) रंग वाली वॉक् जो मृडाल -सिँह के पिठ पर बिराजमान अपने चारो हाथोमे क्रमशः शँख -चक्र -धनुष और बाण धारण करती थी, उन देवो के  दुर्गती हारण के लिए  दुर्गाम नामक दानव सेना नायक समेत तमाम असुरों का संहार कर उन तपस्वियों को पुन: उनका पद व खजाना प्रदान कर उन्हें तथास्तु द्वारा उनकी याचना पुर्णकी, तब स्वर्गलोक से देवता तथा मृतूलोक से मनुष्य उनकी स्तुती दुर्गम- दानव संहारणी "दुर्गा" नाम से करने लगे, माँ उनहे तथास्तु का बरदान देकर अंतर्ध्यान होगइ, तब सबने अपने अंसदान से उक्त प्रतिमा स्थापित की,जोआजभी बिश्वके एकमात्र सर्बेश्वरी शक्ती पिठ के रुपमे कायम है, कालांतर मे इस मंदिर का देखभाल चेरी बंशके राजाओँ द्वारा फिर सुगाँव राजबंशो द्वारा फिर बेतिया राज द्वारा होने लगा, इस मंदिरके  52 एकड़ भुखण्ड मे तालाब बाग 11 अतिथीशालाओ 9 कुप, गणेश -अरुण के रथ मे बिराजमान सुर्य -अपने दोनो पत्नियो के साथ बर्तमान इन्द्र महाराज बली के मस्तक पर बिराजित सत्यनायण स्वरुप बिष्णू लक्ष्मी व अतिक्रमण मुक्ति की याचना मुद्रा में पृथ्वी, -नन्दीबैल शिवलिँग -श्वान रुपधारी भैरव -बलिमाता विशाल परिक्रमाकक्ष व घण्टाघर -काल तथा महाकाल का मंदिर चेरि बंशके इस मँदिर के संरक्षक राजाओ की सुची वाला दो बिशाल शिलालेख(आज  बेतिया राज में जमा है) एवं भुकम्प मे क्षतिग्रस्त होकर पुनः भुकम्प रोधी नागर शैली मे निर्मित इस मंदिर की गाथा गता भुतपुर्व राजमैनेजर बिपिन बिहारी वर्मा द्वारा लगवाया गया शिलापट्ट भक्तो एवं अतिप्राचिन पुजारी पँ0 कृपानाथ झा के बंशजो का पुजा एवं श्रिँगारीक पुजा इस मन्दिर की शोभा बढ़ा रहे है, आज यह मंदिर कोर्ट ऑफ वाड्स के अधिन है, यहा रेल और बस दोनो मार्गो से आ सकते है, बेतिया नगर पच्छिम चम्पारण का मुख्यालय एवं बिहार के मुज्फरपुर नरकटियागंज मार्गमे स्थित है, यहा  आकर माता का  दर्शन मात्र कर लेने से  सुख, सौभाग्य तथा सन्तान प्राप्ती व आपत्ति -बिघ्न -उपद्रव एवँ दुर्गती का नाश होजाता है, यहाँ किए गये चण्डी पाठ एवँ हवन से सतचण्डी महायज्ञ का फल मिल जाता हैँ , यहां सभी भक्तो की मन्नते शीघ्र ही पूरी होती है,यहाँ मन्नत पूर्ण होने पर दान पात्र में दान व छाग बली का बिधान है , इसस्थल को बेतिया राज मैनेजरों द्वारा  शून्य व्यवस्था दे कर 1966 इसवी से ही बेलगाम शोषित किया जा रहा है, जिसकारन इस स्थल के रख-रखाव के लिए कोई ट्रष्ट अधिकृत नही हो पा रहा है, और इसके तमाम व्य्वस्थावो सहित भूखंड बेलगाम हो चुके अतिक्रमण के बेडियों में जकड़ता जा रहा है, जबकि यहां के मंदिर संरक्षण समिति व मंदिर कर्मियों की एकमात्र जीविका पर्यटन ही है मंदिर डाक के जरिए शोषण से सभी त्रस्त है लेख संग्राहकर्ता दुर्गाबाग के सँचालक एवं वर्तमान खैरटिया मंदिर के पुजारी पँ0राकेश चन्द्रझा,09431491033)