शनिवार, 3 दिसंबर 2011

राजेन्दर बाबु के जन्मदिन पर बिचारनिय बिन्दु

1-अन्तरजातिय विवाह के लिए सरकारी प्रसरय क्यो?
2-प्राकृती द्वारा सब मनुस्य बराबर है तो आरक्षण द्वारा अगड़ी जाती के बिकाश मे बाधा क्यो ?
3-सरकार द्वारा आचरण बिगाड़ना व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना धर्म संगत नही है

शुक्रवार, 6 मई 2011

माँ दुर्गाके जमिनपर महिषाशुरका कब्जा,देव भक्तो बचाओ

भारतबर्ष के नागर शैली की अनुपम कृतियो मे एक बिश्व का एकलौता सर्वेश्वरी दुर्गा पिठ बिहार का बेतिया स्थित दुर्गाबाग मंदिर के तमाम 12 एकड़ भुखण्डो पर भी अतिक्रमणकारियों का जन सैलाब टुट पड़ा है,लेकिन जिला प्रशासन, बेतिया राज तथा तमाम जन सहयोगी निगाहे व भक्तगण मुक दर्शक बने अपना मनोरंजन कर इन अतिक्रमणकारियो का मनोबल बढ़ा रहे है .जबकी अतिक्रमण मुक्ती की पहल चारदिवारी निर्माण बिना अधुरी है,. . . इसे पुरा करने के लिये तमाम हिन्दु  नागरिक(ब्यवशाइ, भक्तगण तथा पुजारी) अपने तन,मन और धन के साथ इस ऐतिहासीक कार्य को पुरा करा सकने मे सक्छम देवदुत की प्रतिक्षा मे रत् है ताकी यहा सर्वाधिक भक्तो को सफाइ सुरक्छा व धर्मशाला आदि मुल सुविधा भी मिल सके,…  "जिला प्रशासन द्वारा इसे ध्वनी-बिस्तारक-प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित" करने का एक सुचना पट्टतो लगाया गया है, लेकिन प्रशासन का ही एक बिभाग जिला अनुमण्डल उसकी अनदेखी कर लाउड स्पीकर तथा साउण्ड बक्स बजाने की अनुमती बेरोक टोक <पुजारी के अनुशंसा बिना ही>प्रदान कर रहा है
यहाँ एकसाथ 6 अष्टयाम तक एकसाथ होते रहते है
ऐसे मे पुजापठियो के आलावे अगल बगल के तमाम शिक्षण संस्थाओ,छात्रवासो, आवासो मे रह रहे लोगो के आलावे सबको अनेको कठिनाइयाँ हो रही है
"प्रशासन ध्वनी प्रतिबंधित क्षेत्र घोशणा का अपना बोर्ड हटाले या
उसे नियंत्रित करने का पहल स्वयं करे
"जब प्रशासन ही मौन,तो सुनेगा कौन,"

मंगलवार, 3 मई 2011

आज महिषासुर के कब्जेमे है"माँ दुर्गा की भुमी"

दुर्गासप्तशती के ऋगबेदोक्त देवीसुक्त मे बर्णित,भारतबर्ष के नागरशैली की अनुपम कृतियोँ मे एक,बिहार राज्य के पच्छिम चम्पारण के मुख्यालय बेतिया नगर स्थित "दुर्गा बाग" मंदिर के तमाम 12 एकड़ भुखण्डो को आज महिषाशुर अपने मनमाने ढंग से बेच रहाहै,यहाँ के तमाम शक्तिशाली लोग मुकदर्शक बनकर उनका मनोबल बढ़ा रहे है, लेकिन प्रतिकारक देवदुत की प्रतिक्षा हम सबको है, "शमाबुझकर भी जल सकती है,नौका तुफान से निकल सकती है,इसदेश के तमाम धर्मरक्षको निराश नाहो,हालत कभी भी बदल सकती है"

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

ॐकैसे बचेँगे मन्दिर??

प्राचिन मंदिर सिर्फ हम हिन्दुओँ के आस्ता का प्रतिक चिन्ह ही नही बल्की अपने मे अनेको कहानियाँ व सँस्कृती समेटे हमारे बिश्व की ऐतिहासिक धरोहर भी है,
तमाम मंदिरो का संचालन हमारे बार्षिक अंशदान तथा निर्माताओ द्वारा निर्धारित चल- अचल ब्यवस्थाओँ से तथा पुजारियो की जिविका लोगो के मन्नत पुर्ण होने पर किए गये चढ़ावन से चलता है,
... . . ... राजतंत्र के समाप्ती के बादसे हीँ बेतिया -राज के तमाम धरोहरो के साथ कुछ अतिप्राचिन मंदिर भी कोर्टऑफवाड्स के अधिनस्त होगये, उनके सन्ञ्चालनार्थ तमाम ब्यवस्थाए यथावत रखने के लिए गृहमँत्रालय भारत सरकार द्वारा तमाम अचल सम्प्त्तीयो के आलावे राज कोषसे ही टेम्पुल -डेबलपमेन्ट -फण्ड जमाकराया गया,.................राजस्व परिसद के मेम्बर द्वारा राज प्रबंधक का पद श्रृजित किया गया,इनके द्वारा भी तमाम मंदिरोके उक्त फण्ड को, फिर तमाम चल- अचल सम्पत्तियो को, फिर यज्ञ अनुष्ठान से प्राप्त रकम को तो वे डकार हीँ चुके है,अब मंदिरो को भी डकाने पर तुले हुये है,बेतिया राज के आधिनस्त के तमाम मंदिरो के संरक्षणार्थ मै आप तमाम पत्रकारो,अधिबक्ताओ, बुद्धिजिवियो,अधिकारियो,धर्मरक्षको,धर्मगुरुओँ,शासको,प्रशासकोँ, नेताओ,तथा देव तुल्य सजग नारिको के रुपमे अपका बिहार राज्य के बेतिया नगर मे आवाहन करता हुँ