मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

ॐकैसे बचेँगे मन्दिर??

प्राचिन मंदिर सिर्फ हम हिन्दुओँ के आस्ता का प्रतिक चिन्ह ही नही बल्की अपने मे अनेको कहानियाँ व सँस्कृती समेटे हमारे बिश्व की ऐतिहासिक धरोहर भी है,
तमाम मंदिरो का संचालन हमारे बार्षिक अंशदान तथा निर्माताओ द्वारा निर्धारित चल- अचल ब्यवस्थाओँ से तथा पुजारियो की जिविका लोगो के मन्नत पुर्ण होने पर किए गये चढ़ावन से चलता है,
... . . ... राजतंत्र के समाप्ती के बादसे हीँ बेतिया -राज के तमाम धरोहरो के साथ कुछ अतिप्राचिन मंदिर भी कोर्टऑफवाड्स के अधिनस्त होगये, उनके सन्ञ्चालनार्थ तमाम ब्यवस्थाए यथावत रखने के लिए गृहमँत्रालय भारत सरकार द्वारा तमाम अचल सम्प्त्तीयो के आलावे राज कोषसे ही टेम्पुल -डेबलपमेन्ट -फण्ड जमाकराया गया,.................राजस्व परिसद के मेम्बर द्वारा राज प्रबंधक का पद श्रृजित किया गया,इनके द्वारा भी तमाम मंदिरोके उक्त फण्ड को, फिर तमाम चल- अचल सम्पत्तियो को, फिर यज्ञ अनुष्ठान से प्राप्त रकम को तो वे डकार हीँ चुके है,अब मंदिरो को भी डकाने पर तुले हुये है,बेतिया राज के आधिनस्त के तमाम मंदिरो के संरक्षणार्थ मै आप तमाम पत्रकारो,अधिबक्ताओ, बुद्धिजिवियो,अधिकारियो,धर्मरक्षको,धर्मगुरुओँ,शासको,प्रशासकोँ, नेताओ,तथा देव तुल्य सजग नारिको के रुपमे अपका बिहार राज्य के बेतिया नगर मे आवाहन करता हुँ