रविवार, 9 सितंबर 2012

उपेन्द्र नारायण झा `अघोर`दिनॉंक 27-04- 2015 को पंचतत्व मे समाहित

प्रसिद्ध तांत्रिक श्री उपेन्द्र नारायण झा अघोर का जन्म बेतिया प०चम्पारण जिले के साठी में ३-१०-१९४९ ई० को हुआ,पिता स्व० जटाशंकर झा(ज्योतिष) एवं माता स्व० मुन्नी देबी के पुत्र अघोर की प्राथमिक शिक्षा राजपुर बिद्यालय से हुई तथा माध्यमिक शिक्षा उच्च विद्यालय नरकटियागंज से हुई जहाँ से आपने मैट्रिक की परीक्षा १९६७ ई० में पास किया आप महारानी जानकी कुअर महाविद्यालय बेतिया से सन १९६८ में प्रवेशिका परीक्षा उत्रिण करने के बाद पुन: इसी विद्यालय से १९७२ ई० में अर्थशास्त्र विषय से स्नातक प्रतिष्ठा की योग्यता  प्राप्त की , पुन: आपने संस्कृत से मध्यमा एवं शास्त्री किया , इसी बिच आपका विबाह मुजफ्फरपुर जिले के शीतल पट्टी मीणा पुर निवासी स्वर्गीय पं० इन्द्रजीत झा जो राज मंदिर दुर्गाबाग बेतिया के वंशानुगत सहायक  पुजारी थे, की सुपुत्री मालती झा से ११-५-१९६९ में सम्पन्न हुआ, आपके सात संतानों में चार पुत्र, राकेश चन्द्र झा बबलू , मुकेश चंद्र झा , सतीश चन्द्र झा रंजन, नितेश चन्द्र झा बाबा तथा तिन पुत्रियां , नीलम, किशोरी तथा शिल्पी हुई,बाल्य काल से हीं धर्म-आध्यात्म में आपकी आस्था थी, बाल्य काल में भी आप अपने सहपाठियों के साथ खेल में भाग न लेकर मंदिर के साफ-सफाई में लगे रहते थे, आपकी कठिन भक्ति के कारण आपका माता से बिभिन्न रूपों में साक्षात्कार हुआ करता था, जिससे आप धर्म के मार्ग में चलने को प्रेरित होते रहे , अध्ययनोपरान्त आप यज्ञनारायण में प्रवृत हुए और उचित मार्गदर्शन हेतु गुरु की तलाश करने लगे ,तदोपरांत १९७३ ई० में परम पूजनीय श्री श्री अवधूत भगवान श्री राम जी से दीक्षा ग्रहण कर योग साधना ,तन्त्र साधना और कपाली साधना में लिन होगये , साधना के कठिन ब्रतों का निरंतर अनुपालन करते हुए माता की कृपा से आपको कई सिद्धियाँ प्राप्त हुई जिनमे तन्त्र सिद्धि प्रमुख है ,संत रूप में अघोरी पन्थ परम्परा में अघोर उपनाम आपके नाम के साथ जुड़ा, ........इस पन्थ के दाइत्व का निर्वहन करते हुए गुरु शिष्य परम्परा के तहत पुरे भारत में आपने हजारों शिष्यों को दीक्षा दिया , तन्त्र साधना को आगे बढाने के लिए अपने उपास्य गढ़ी माइ की असीम कृपा से राजपुर जंगल में एक विशाल मंदिर की आपने स्थापना की, आपका लोक कल्याणकारी जीवन , माँ की भक्ति के साथ ताप-संताप से ग्रसित दुख: पीड़ित मानव सेवा में उत्सर्जित रही, तांत्रिक और औषधिय उपायों से मानव समाज को खुशियां बाँटना ही आपका मूल कार्य था , लाभ- लोभ से रहित आपका निष्काम जीवन पूर्णत: भक्ति साधना के निमिक्त रहा, यही कारण है कि आपने राजमंदिर दुर्गाबाग के पुजारी का पद स्वीकार नही कर आपने यह कार्य अपनी भार्या श्रीमती  मालती देवी के कंधे पर डाल दिया ,आप स्वछंद सेवा मार्ग पर अपने मृत्यु काल तक उन्मुख रहे, आपके जीवन का सम्पूर्ण समय दुर्गाबाग मंदिर बेतिया व गढ़ी माइ मंदिर राजपुर नरकटियागंज में पूजा अर्चना और साधना में ब्यतीत होता रही,धर्म अद्यात्म को बढ़ावा देने के लिए आपने दो संस्कृत विद्यालय कि स्थापना कि जो इन्द्रजीत शान्ति संस्कृत प्राथमिक सह उच्च विद्यालय बैतापुर तथा उपेन्द्र मालती संस्कृत महा विद्यालय बैतापुर के नाम से स्थापित है ,आपका यह लोक कल्याणकरी कार्य धर्म- अद्यात्म के साथ-साथ बहुत से लोगो को रोजी रोटी तो दे ही रहा है , हजारों विद्यार्थी इसमें विद्यार्जन कर लाभान्वित हो रहे है आप दिनॉक २७-४-२०१५ को अपना दैैनिक कार्य स्वयं  हिं सम्पन्न कर लेने के बाद १ बजे दिन मे हम सब से बिमुख होकर देवी मई और अमर होगए

बुधवार, 5 सितंबर 2012

दर्देदिल की आवाज


देखा है जिंदगीमे`,हमने ये आजमाके !
देते हैं यार धोखा ,दिलके करीब आके |
किस दुश्मनी का मुझसे , बदला लिया है यारा !


खुश है जहां वाले , मेरा आशिया जलाके |

१:- शाम सूरज को ढलना सिखाती है,शमा परवाने को जलना सिखाती है
आगे बढने में आती है तकलीफे कई, लेकिन ये तकलीफे ही तो इंसान को
आगे बढ़ना सिखाती है
२:- दर्द में कोई मौसम प्यारा नही होता, दिल हो प्यासा तो पानीसे गुजra नही होता
कोईतो देखे हमारी बेबसी, हम सबके होजाते पर कोई हमारा नही होता
३:-सितारों में अकेला चाँद जगमगाता है, अकेला इंसान डगमगाता है
काँटों से मत घबराना ऐ दोस्त, क्योकि कटो` मे ही अकेला गुलाब मुस्कुराता है
४:-आज खुदाने फिर पूछा,तेरा चेहरा उदास क्यों है,तेरी आखों में प्यास क्यों है
जिसके पास तेरे लिये वक्त नही है, वही तेरे लिए खास क्यों है
५:-फूल को कभी खुश्बू का एहसास नही होता, हरकिसी-पर दिल को विब्श्वास नही होता
जरूर खुदा मेहरबान है मुझपर,बरना आप जैसा प्यारा दोस्त मेरे पास नही होता
६:-प्यार आपस में बढाओ तो कोई बात बने, समाज को एक बनाओ तो कोई बात बने
एक धक्के से नही होनेको है ..............,जोर पुरजोर लगावो तो कोई बात बने
७;-संघर्षो के शाये में असली आजादी पलती है, इतिहास उधर मूढ़जाता है जिस ओर जवानी चलती है