यु तो बेतिया राज के मन्दिर अधीक्षक कोमात्र १८०० रुपया वार्षिक बेतन मिलता है,लेकिन राज में खाकपति के रूप में आगमन से आज शौट-कट के जरिये अरबपती हो चुके है, अब अपने अधिनस्त के सभी मन्दिरों का आर्थिक नाकेबंदी कर रहे है,मन्दिरों का पेंट-पोचरा,बार्षिक उत्सव शुल्क ,माली, टहलू,सिपाही, बाबर्ची, दैनिक भोग समाग्री, सपाईसंसाधनो के आलावे रात्रि प्रहरी,पूजन व आभूषन तक को डकार चुके है,अब मन्दिरों से बेरोक -टोक आयोजन शुल्को के आलावे,भूखंड, तालाब, बाग,भवनों के लीज का पैसा भी राज में जमा करने के नाम पर ले रहे है ,और भगतो को मन्दिर में सहयोग करने से रोकते भी है , तथा मन्दिरों के बिकाश पर चर्चा करने के नाम से वे भड़क जाते है,तथा यह कहते है की मेरा कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता ,मै अपने मरनो प्रान्त तक इस पद पर बना रहूँगा ,
अत: उनके लिए मेरा यह संदेस :-
होके बेदर्द यू लासो के कफन मत बेचो, फूल खिलनेदो आमन के चमन मत बेचो , तुमको बेतिया राज से हुए आमदनी की कसम देता हु, सवार्थ के हाथो अपना वतन मत बेचो
अत: उनके लिए मेरा यह संदेस :-
होके बेदर्द यू लासो के कफन मत बेचो, फूल खिलनेदो आमन के चमन मत बेचो , तुमको बेतिया राज से हुए आमदनी की कसम देता हु, सवार्थ के हाथो अपना वतन मत बेचो