गुरुवार, 29 मार्च 2012

बेतिया राजमैनेज साहब मन्दिरों के शोषण में अब हम आपका बिरोध करेंगे : इसकी सजा भुगतने को तैयार हूँ

बेतिया राज के कोर्ट ऑफवाड्स  के अब  तक  के  मंदिर अधिक्षको में से  आमिर  बनने का  सॉट- कवट हाथ  लगा  चुके  1966 इस्वी से अपने  पद  पर  मरणोपरांत  तक  बने  रहने  का  दावा  करने  वाले  वर्तमान  मंदिर  अधीक्षक द्वारा  बेतिया राज के तमाम मन्दिरों का अब तक के  किए  गए आर्थिक नाकेबंदी को नाकाम करे कही उन्हें  शसक प्रसासक व धर्म रक्ष्को और हमसबका इस गम्भीर  बिषय पर मौन समर्थन  प्राप्त तो नहीं  है ??इस बात की पुष्टि मन्दिरों के रख-रखाव पर एक फूटी कौड़ी भी खर्च नही करने वाले राजस्व परिषद से मन्दिरों के शोषण के लिए जारी नित्य नये तुगलकी फरमानों से हो जाता है .........,इनसब से उबकर कुछ और करने को दिल बेचैन सा हो जाता है,आज दिनांक 9/7/2013 को शाम के 4 बजे राज मैनेजर अपने कार्यालय में एक बैठक बुलये थे, मै भी गया था, बैठक के अंत में सबको एक-एक रसीद बही दिया जाने लगा,सब लोग सहर्स लेकर उससे प्राप्त राजस्व राज के खजाने में जमा करने का संकल्प ले रहे थे ,
........ मै नही लिया , उनलोगों ने मुझसे कारण पूछा , मै - श्री मान जब  मन्दिरों के रख-रखाव सुविधा में विकास का सब्जबाग दिखाकर 1964 ईस्वी में मन्दिर के तमाम अतिथिशालाओं का लीज  कौड़ीयो के भाव  में किया गया 'तमाम भूखंडों का लीज भी किया गया बगीचों के पेड़ो से फलो और तालाब का डाक तो हर वर्ष हो रहा है ,1995 ईस्वी से लगातार यज्ञ व अष्टयाम से शुल्क बढोत्तरी के क्रममें लगातार वसूली हो रही है  ........ ....... ऐसे में माली, टहलू, सिपाही,ववार्ची,पेंट-पोचरा समेत तमाम मन्दिर रख-रखाव व सफाई तथा सुरक्षा  समबंधित तमाम बुनियादी व्यवस्थाये निरस्त कर ,पुजारियों को दीजारही नगण्य राशी को ही मन्दिर रख- रखाव की राशी बतलाया जा रहा है... ऐसे में मै जो रशीद से वसूल कर दूंगा उसे आप मन्दिर में ही खर्च करेंगे,पुजारियों व भक्तो द्वारा हो रहे मन्दिर संचालन से आप बेहतर संचालन करेंगे लिखित  आश्वसन दे ......
अन्यथा जो भक्त पेंट-पोचरा,टूट-फुट मरम्मत में सहयोग करता है उस भक्त के गाड़ी पूजन, कथा व विवाह से दक्षिणा के आलवे क्रमस:151रुपया, 51 रुपया, 1100 रुपया का रशीद काटने में मै अपने को असमर्थ पारहा हु,........,श्रीमान मन्दिरों का शोषण अतिक्रमण का पोषण तथा बेतिया राज के मन्दिरों को नष्ट करने की साजिस अब मै सहने में अक्षम महसूस कर रहा हूँ,........,हाँ अगर सर्वोच्च न्यालय के आदेशो का अनुपालन करके कमसे कम मन्दिरों के भूखंडों को 1856 ईस्वी के स्थिती में बहाल करदेते है तब आज के वर्तमान दर से किसी भी मन्दिर को उन भूखंडों का कर आपके राज खजाने में जमा करने में कोई आपत्ति नही होगी ,........ यु तो तमाम लौकिक विद्याओं का विकास लाठी और अग्नेआस्त्रो के ही बल परहीं  होता है , लेकिन मै कोर्ट ऑफ वाड्स के अधिनस्त बेतिया-राज के तमाम मन्दिरों के शोषण के खिलाफ रख-रखाव निति बनाने के लिए सरकारों को अपने लेखन कला के जरिये विवश करने का पक्षधर हूँ   

कई पीढियों से मंदिलो का देख भाल करने  के बाद भी मन्दिरों का बेलगाम शोषण व अतिक्रमण करने वाली शक्तिया हावी होते जा रही है बचावो ....... इसे शेयर करो तथा मेरा मनोबल बदावो
`` आपका आशीर्वाद ही मेरा भविष्य है ``